BA Semester-1 Manovigyan - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

प्रश्न- संवेग के "जेम्स-लैंग सिद्धान्त' का वर्णन कीजिए।

उत्तर -
संवेग मानव जीवन का प्रमुख पद है। क्रोध, भय, खुशी हमारे जीवन के प्रमुख संवेग में से है। संवेग एक ऐसी जटिल अवस्था है जहाँ मूल रूप से तीन तत्व महत्वपूर्ण होते हैं - आंगिक प्रतिक्रियाएँ, अभिव्यजन व्यवहार तथा सुखद या दुःखद भाव। इन तीनों में से ऐसे तो प्रत्येक महत्वपूर्ण हैं परन्तु संवेग के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए सुखद या दुःखद भाव का होना सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इसके अभाव में संवेग संवेग नहीं रह जाता है।
संवेग की व्याख्या करने के लिये मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों का वर्णन किया है जिसमें जेम्स लाजे सिद्धान्त का वर्णन निम्न प्रकार है -

जेम्स-लांजे सिद्धान्त (James-Lange Theory) - इस सिद्धान्त का प्रतिपादन दो वैज्ञानिकों अर्थात विलियम जेम्स तथा कार्ल लांजे ने मिलकर किया। विलियम जेम्स एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक तथा कार्ल लांन्ज एक डेनिस शरीर क्रिया वैज्ञानिक थे इनके द्वारा 1880 में स्वतंत्र रूप से इस सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ अतः इस सिद्धान्त का नाम जेम्स-लाजे सिद्धान्त रखा गया।

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इस सिद्धान्त द्वारा सवेग की व्याख्या सामान्य बोध की व्याख्या से ठीक विपरीत है। सामान्यतः जब हम कोई सावेगिक उद्दीपक जैसे - बाघ या भालू देखते हैं तो भाग जाते हैं इसलिये डर जाते है अर्थात् पहले संवेगात्मक अनुभूति होती है उसके बाद संवेगात्मकव्यवहार होता है लेकिन जेम्स-लांजे सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति बाघ या भालू देखता है, भाग जाता है, इसलिये डर जाता है। हम दुश्मन को देखते हैं, उसकी तरफ से मुँह फेर लेते हैं, इसलिये घृणा हो जाती है। जेम्स-लाजे सिद्धान्त के अनुसार - पहले संवेगात्मक व्यवहार होता है और तब संवेगात्मक अनुभूति होती है। यदि संवेगात्मक व्यवहार नहीं होगा, तो संवेगात्मक अनुभूति भी नहीं होगी।

जेम्स-लांजे सिद्धान्त की व्याख्या निम्नलिखित तीन चरणों में करता है

(1) संवेग की प्रकिया प्रत्यक्षण पर निर्भर करती है जब किसी उद्दीपक द्वारा ग्राहक यानि ज्ञानेन्द्रिय मे तंत्रिका आवेग उत्पन्न होता है तो वह मस्तिष्क मे पहुँचता है जिससे व्यक्ति को उद्दीपक का प्रत्यक्षण होता है। जैसे- यहाँ व्यक्ति भालू या बाघ को अपने सामने होने का प्रत्यक्षण करता है।
(2) किसी उद्दीपक का प्रत्यक्षण होने से शरीर के भीतरी अंगों एवं बाह्य अंगो में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति संवेगात्मक व्यवहार करता है जैसा कि दिये गये चित्र से स्पष्ट होता है कि पथ दो के द्वारा तंत्रिका आवेग मस्तिष्क से निकलकर शरीर के अन्तरावयव तथा भीतरी अंगों जैसे हृदय, फेफड़े ऐड्रिनल ग्रन्थि वृक्क आदि को उत्तेजित करता है तथा साथ-ही-साथ शरीर के बाहरी अंगों यानि हाथ-पैर की मांसपेशियों को क्रियाशील कर देता है। जैसे - बाघ या भालू देखने के बाद व्यक्ति के हृदय की गति तीव्र हो जाती है, साँस तेजी से चलने लगती है तथा ऐड्रिनल ग्रन्थि से एड्रिनालिन निकलकर खून में मिलना प्रारम्भ हो जाता है आदि-आदि। इन सबका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति में तीव्र शारीरिक परिवर्तन होता है जिसके कारण वह बाघ या भालू को देखकर भाग जाता है यानि संवेगात्मक व्यवहार करता है।

(3) संवेगात्मक व्यवहार के बाद मस्तिष्क को यह सूचना मिलती है कि अमुक व्यवहार किया गया है उपरोक्त चित्र से स्पष्ट होता है कि शरीर के भीतर अंगों से तथा शरीर के बाहरी अंगों से मस्तिष्क को अमुक सांवेगिक व्यवहार से सम्बन्धित परिवर्तनों की सूचना मिलती है। इस तरह की व्याख्या से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं - (i) संवेगात्मक व्यवहार पहले होता है तथा संवेगात्मक अनुभूति बाद में। (ii) संवेगात्मक अनुभूति का होना संवेगात्मक व्यवहार पर निर्भर करता है। यदि संवेगात्मक व्यवहार नहीं होगा तो संवेगात्मक अनुभूति भी नहीं होगी। बाघ या भालू को देखकर हम भाग जाते हैं। यह संवेगात्मक व्यवहार हुआ और इस भागने की सूचना मस्तिष्क को मिलती है जिसके फलस्वरूप हममे संवेगात्मक अनुभूति होती है अर्थात् हम डर जाते हैं।

जेम्स-लांजे सिद्धान्त का समर्थन आनन पुनर्निवेशन प्राक्कल्पना (Facial Feedback Hypothesis) के क्षेत्र में लायर्ड तथा मैटसुमोटो 1987 द्वारा किये गये अध्ययनों के द्वारा मिलता है। यह प्राक्कल्पना बतलाती है कि आनन अभिव्यक्ति संवेगात्मक अवस्थाओं को प्रभावित करता है तथा साथ ही साथ उन्हें प्रतिबिम्ब भी करता है। जैसे - हम लोग हँसते हैं, तो खुशी का अनुभव करते हैं तथा जब तेवर दिखाते हैं या भौं चढाते हैं, तो हमें दुःख का अनुभव होता है।

मनोवैज्ञानिको ने जेम्स-लांजे सिद्धान्त की आलोचना इस प्रकार की है -

(i) इस सिद्धान्त के अनुसार सवेगात्मक अनुभूति, सर्वगात्मक व्यवहार पर निर्भर करती है। परन्तु सच्चाई ऐसी नहीं है करीब-करीब सभी संवेग में तो एक ही तरह के संवेगात्मक व्यवहार जैसे - हृदय की गति में वृद्धि, रक्तचाप में वृद्धि एव इसकी अनियमितता आदि देखने में मिलती है। यदि सचमुच में संवेगात्मक अनुभूति संवेगात्मक व्यवहार पर निर्भर करती तो वैसी परिस्थिति में व्यक्ति को हमेशा एक ही संवेगात्मक अनुभूति होती क्योंकि करीब-करीब एक ही तरह का संवेगात्मक व्यवहार विशेषकर आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन सभी संवेग में हुआ करते हैं। परन्तु ऐसा नहीं होता कि कभी हमें क्रोध का संवेग होता है, तो कभी डर का तो कभी डाह का। इसका मतलब यह हुआ कि संवेगात्मक अनुभूति, संवेगात्मक व्यवहार पर निर्भर नहीं करती है।

(ii) इस सिद्धान्त के अनुसार संवेगात्मक अनुभूति शारीरिक परिवर्तनों पर निर्भर करती है। यदि संवेगात्मक अनुभूति सचमुच में शारीरिक परिवर्तनों पर निर्भर करती है तो जब-जब शारीरिक परिवर्तन व्यक्ति में उत्पन्न होता तब-तब उसमें संवेग की अनुभूति होगी। परन्तु ब्रेडी (Brady 1958) के प्रयोगात्मक अध्ययनों से साबित हुआ है कि ऐसा नहीं होता है, उन्होंने एक बन्दर को एपाइनफ्राईरिन की सुई दी जिसके परिणामस्वरूप बन्दर के हृदय की गति तीव्र हो गयी, रक्तचाप बढ़ गया, सॉस की गति तीव्र हो गयी तथा हाथ और पैर की माँसपेशियों में खून की आपूर्ति अधिक हो गयी। इन सभी शारीरिक परिवर्तन के आधार पर बन्दर में क्रोध की सांवेगिक अनुभूति होनी चाहिए थी परन्तु उसमें कोई भी सांवेगिक अनुभूति शारीरिक परिवर्तन पर निर्भर नहीं करती।

(iii) जेम्स-लाजे सिद्धान्त के अनुसार यदि शारीरिक परिवर्तन की सूचना मस्तिष्क को न मिले तो संवेग की अनुभूति नहीं होगी। परन्तु शेरिंगटन ने कुत्ता पर एक प्रयोग कर यह दिखला दिया कि यह बात गलत है। उन्होंने कुत्ते का अन्तराग (Visceral organs) तथा मस्तिष्क को मिलाने वाली सभी तंत्रिकाओं को काट दिया। ऐसी अवस्था में शारीरिक परिवर्तन की सूचना मस्तिष्क को नहीं मिलेगी तब उसके सामने एक बिल्ली को लाया गया, तो भी कुत्ते में क्रोध का सवेग होते पाया गया।

 

निष्कर्ष के रूप में कहा जाता है कि शारीरिक परिवर्तन या सावेगिक व्यवहार पर ही संवेगात्मक अनुभूति निर्भर नही करती है। अतः जेम्स-लांजे का सिद्धान्त मात्र एक पक्षीय प्राक्कल्पना है जिसका कोई प्रयोगात्मक सबूत नहीं है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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